2 Chronicles 24
1 जब योआश ने राज्य करना आरम्भ किया तब वह सात वर्ष का था। वह राजधानी यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा। उसकी मां का नाम सिब्याह था। वह बएर-शेबा नगर की रहनेवाली थी।
2 योआश ने पुरोहित यहोयादा के जीवन-भर वे ही कार्य किये जो प्रभु की दृष्टि में उचित थे।
3 यहोयादा ने दो कन्याओं से उसका विवाह करवाया, जिनसे उसके पुत्र और पुत्रियां उत्पन्न हुईं।
4 इसके पश्चात् राजा योआश ने प्रभु के मन्दिर की मरम्मत करने का निश्चय किया।
5 अत: उसने पुरोहितों और उप-पुरोहितों को एकत्र किया, और उनसे यह कहा, ‘आप लोग प्रतिवर्ष यहूदा प्रदेश के सब नगरों में जाइए, और अपने परमेश्वर के भवन की मरम्मत के लिए इस्राएली लोगों से वार्षिक चन्दा लीजिए। देखिए, यह काम शीघ्र समाप्त होना चाहिए।’ किन्तु उप-पुरोहितों ने काम समाप्त करने में शीघ्रता नहीं की।
6 अत: राजा योआश ने महापुरोहित यहोयादा को बुलाया, और उससे कहा, ‘आप जानते हैं, कि प्रभु के सेवक मूसा ने साक्षी-पत्र के शिविर के लिए इस्राएली धर्म-मण्डली पर कर लगाया था। तब आपने उप-पुरोहितों को यह कर इकट्ठा करने के लिए यहूदा प्रदेश के नगरों और यरूशलेम में क्यों नहीं भेजा, और उन पर दबाव क्यों नहीं डाला कि वे यह चन्दा वसूल करें?’
7 रानी अतल्याह के पुत्रों ने परमेश्वर के भवन को क्षति पहुँचाई थी। उन्होंने प्रभु को अर्पित सब वस्तुएँ प्रभु-भवन से हटा कर बअल देवता को चढ़ा दी थीं।
8 अत: राजा योआश के आदेश से एक बक्सा बनाया गया। उन्होंने उसको प्रभु के भवन के प्रवेश-द्वार के बाहर रख दिया।
9 तत्पश्चात् समस्त यहूदा प्रदेश तथा यरूशलेम नगर में यह राजाज्ञा सुनाई गई कि जो कर प्रभु के सेवक मूसा ने निर्जन प्रदेश में इस्राएली समाज पर लगाया था, वह समस्त इस्राएलियों को प्रभु के लिए नियमित रूप से चुकाना होगा।
10 सब अधिकारी तथा सब लोग आनन्द और हर्ष से कर चुकाने लगे। वे कर का रुपया लाते और बक्से में डाल देते थे। और यों सबने अपना कर चुका दिया।
11 जब उप-पुरोहित देखते कि बक्से में बहुत सिक्के जमा हो गए हैं, तब वे बक्सा उठाकर राजा के उच्चाधिकारियों के पास उसको पहुँचा देते थे। तब राजा का सचिव तथा महापुरोहित का उच्चाधिकारी आते और वे बक्से को खाली करके उसके स्थान पर रख देते थे। वे प्रतिदिन ऐसा ही करते थे; और इस प्रकार उन्होंने अपार मात्रा में रुपया एकत्र कर लिया।
12 राजा योआश तथा पुरोहित यहोयादा ने यह रुपया प्रभु के भवन की मरम्मत करवानेवाले अधिकारियों को सौंप दिया। अधिकारियों ने मरम्मत करनेवाले राज-मिस्त्रियों, बढ़इयों तथा लोहे और पीतल के कारीगरों को मजदूरी पर नियुक्त किया।
13 यों कारीगर मजदूरी लेकर काम करते गए, और प्रभु के भवन की मरम्मत होने लगी। अन्त में मरम्मत का काम समाप्त हुआ और परमेश्वर का भवन पहले-जैसा सुदृढ़ हो गया।
14 जब उन्होंने काम पूरा कर लिया तब वे बचा हुआ रुपया राजा योआश और पुरोहित यहोयादा के पास लाए। बचे हुए सिक्कों से प्रभु के भवन के लिए पवित्र पात्र खरीदे गए: आराधना-कार्य के पात्र, अग्नि-बलि के पात्र, सुगन्धित धूप-बलि के पात्र तथा सोना-चांदी के अन्य पात्र। जब तक पुरोहित यहोयादा जीवित रहा तब तक प्रभु के भवन में नियमित रूप से अग्नि-बलि चढ़ाई जाती रही।
15 यहोयादा वृद्धावस्था में तथा दीर्घायु भोगकर मरा। मृत्यु के समय उसकी आयु एक सौ तीस वर्ष थी।
16 उसने इस्राएली राष्ट्र तथा परमेश्वर एवं उसके भवन के लिए सत्कर्म किये थे, इसलिए उसको दाऊदपुर में राजाओं की कब्रों के मध्य गाड़ा गया।
17 पुरोहित यहोयादा की मृत्यु के बाद यहूदा प्रदेश के उच्चाधिकारी राजा योआश के पास आए। उन्होंने भूमि पर लेटकर राजा को साष्टांग प्रणाम किया। राजा ने उनकी बातें मान लीं।
18 यहूदा प्रदेश के लोग अपने पूर्वजों के प्रभु परमेश्वर का भवन छोड़कर अशेराह देवी तथा मूर्तियों की पूजा करने लगे। उनके इस अपराध के कारण प्रभु का क्रोध यहूदा प्रदेश तथा राजधानी यरूशलेम के निवासियों पर भड़क उठा।
19 फिर भी वह उनको अपनी ओर उन्मुख करने के लिए उनके मध्य-नबियों को भेजता रहा। नबियों ने उनको समझाया; किन्तु उन्होंने नबियों की चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया।
20 पुरोहित यहोयादा का एक पुत्र था − जकर्याह। परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा और वह एक ऊंचे स्थान पर खड़ा होकर लोगों से कहने लगा, ‘परमेश्वर यों कहता है: तुम मेरी आज्ञाओं का उल्लंघन क्यों करते हो? इस कारण तुम्हारा कोई भी काम सफल नहीं होता है। तुमने मुझ-प्रभु को छोड़ दिया, इसलिए मैंने भी तुमको छोड़ दिया।’
21 किन्तु उन लोगों ने जकर्याह के विरुद्ध षड्यन्त्र रचा, और राजा के आदेश से उसको प्रभु-भवन के आंगन में पत्थर मार-मार कर मार डाला।
22 जकर्याह के पिता यहोयादा ने राजा योआश के साथ भलाई की थी। किन्तु राजा योआश इस भलाई को भूल गया; और उसके पुत्र की हत्या कर दी। जब जकर्याह का प्राण निकल रहा था तब उसने यह कहा, ‘प्रभु यह देखे और इसका प्रतिशोध करे।’
23 उसी वर्ष के अन्त में सीरिया देश की सेना ने राजा योआश पर आक्रमण कर दिया। सैनिक यहूदा प्रदेश तथा राजधानी यरूशलेम पर चढ़ आए। उन्होंने नगरवासियों के मध्य से योआश के उच्चाधिकारियों का पूर्ण संहार कर दिया, और उनको लूट लिया। उन्होंने लूट का सारा माल अपने राजा के पास राजधानी दमिश्क को भेज दिया।
24 सीरिया की सेना में थोड़े ही सैनिक थे। लेकिन प्रभु ने उनके हाथ में राजा योआश की विशाल सेना सौंप दी! क्योंकि राजा योआश के सैनिकों, उच्चाधिकारियों ने अपने पूर्वजों के प्रभु परमेश्वर को त्याग दिया था। इस प्रकार प्रभु ने सीरिया के सैनिकों के हाथ से राजा योआश को दण्ड दिया।
25 सीरिया के सैनिक राजा योआश को बहुत घायल करके लौट गए। योआश के दरबारी पुरोहित यहोयादा के पुत्र के खून का बदला योआश से लेना चाहते थे। अत: उन्होंने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा, और जब वह पलंग पर लेटा हुआ था तब उसकी हत्या कर दी। राजा योआश मर गया। उसको दाऊदपुर में गाड़ा गया, किन्तु उसके शव को राजाओं के कब्रिस्तान में नहीं दफनाया गया।
26 जिन्होंने उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचा था, उनके नाम इस प्रकार हैं: अम्मोन देश की रहनेवाली शिम्हत का पुत्र जाबाद और मोआब देश की रहनेवाली शिम्रित का पुत्र यहोजाबाद।
27 राजा योआश के पुत्रों का विवरण, उसके विरुद्ध की गई नबूवतों का वर्णन तथा परमेश्वर के भवन के पुनर्निर्माण का इतिहास ‘राजाओं का इतिहास-ग्रन्थ’ की व्याख्या-पुस्तक में लिखा हुआ है। योआश का पुत्र अमस्याह उसके स्थान पर राज्य करने लगा।